नमस्कार दोस्तों Top Kro में आपका स्वागत है। इस पोस्ट में हम “गुरु तेग बहादुर के बारे में ( Guru teg bahadur essay in hindi ) पढेंगे। इस लेख में Guru Teg Bahadur Par Nibandh कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए है।
इस पोस्ट में आपको गुरु तेग बहादुर के बारे में कई निबन्ध दिए गए है जैसे गुरु तेग बहादुर पर निबंध 150 शब्दों में, गुरु तेग बहादुर पर निबंध 300 शब्दों में, गुरु तेग बहादुर पर निबंध 1000 शब्दों में तथा गुरु तेगबहादुर पर 10 लाइन इत्यादि।
Guru teg bahadur essay in hindi की सहायता से विद्यार्थी अपनी जानकारी बढ़ा सकते है। इस निबंध के माध्यम से हमने बताया है कि गुरु तेग बहादुर का जन्म कब तथा कहाँ हुआ, गुरु तेग बहादुर के माता – पिता का नाम क्या था, तेग बहादुर जी गुरु कैसे बनें तथा गुरु तेग बहादुर जी ने कौनसे कार्य किये।
गुरु तेग बहादुर पर निबंध 150 शब्दों में – Essay on guru teg bahadur in hindi
सिक्खों के नोवें गुरु तेग बहादुर एक महान कवि, योद्धा तथा शिक्षक थे। उन्होंने हमेशा लोगों को शांति तथा प्रेम के साथ रहने की सीख दी। गुरु तेगबहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल 1621 में पंजाब के अमृतसर नामक स्थान पर हुआ और उनका नाम त्याग मल रखा गया।
गुरु तेगबहादुर के पिता का नाम गुरु हरगोविंद सिंह था, जो सिक्खों के छठे गुरु थे। गुरु तेगबहादुर जी की माता जी का नाम नानकी था। गुरु तेगबहादुर ने हिंदी, संस्कृत तथा गुरुमुखी सीखी। वे घुड़सवारी, तीरदांजी और तलवारबाजी में भी माहिर थे।
गुरु तेगबहादुर का “तेग बहादुर” नाम करतारपुर में मुगलों के खिलाफ अदम्य साहस का परिचय देने पर उनके पिता ने रखा था जिसका अर्थ है “बहादुर तलवारधारी”। गुरु तेगबहादुर 1664 में सिक्खों के नौवे गुरु बने तथा 1675 तक रहें। गुरु तेगबहादुर ने हमेशा ही लोगों को सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी और अपनी यात्रायों के दौरान उन्होंने कई आध्यात्मिक तथा रचनात्मक कार्य किये।
गुरु तेग बहादुर पर निबंध 300 शब्दों में – Guru Tegh Bahadur Essay in Hindi
Guru Teg Bahadur सिखों के 9वें गुरू थे । गुरु तेगबहादुर सिखों के छठे गुरू श्री हरगोविन्द के सबसे छोटे पुत्र थे । गुरु हरगोविन्द सिंह जी के पाँच पुत्र थे। तेग बहादुर एकदम वैरागी थे।
गुरु तेग बहादुर का जन्म 1 अप्रैल 1621 ई० में अमृतसर में हुआ था। विषय-सम्पत्ति और सांसारिक बसखेड़ों से सदा अलग रहने के कारण इनके पिता ने इन्हें गुरु गद्दी नहीं दी थी, पर जब आठवें गुरु हरकिन ने मृत्यु के समय उन्हें ही गुरु बनाने का संकेत किया, तब सिख लोगों ने इनके पास पहुँच कर गुरु का पद स्वीकार करने के लिये प्रार्थना की।
धीरमल के उपद्रव से दूर रहने के लिये गुरू तेग बहादुर पहाड़ी इलाके में जाकर रहने लगे और वहीं “आनन्दपुर” के नाम से एक नगर बसा लिया।
Guru Teg Bahadur जब पटना में थे तब उनके पास पंजाब से खबर पहुंची कि औरंगजेब के अत्याचारी शासनकर्ताओ के मारे प्रजा त्राहि-त्राहि कर रही है। वे उपाय सोचने लगे कि आखिर इन अत्याचारों का अन्त कैसे हो सकता है? कुछ दिन बाद उन्होंने अपने पुत्र को पटना से लाने के लिये खबर भेज दी।
गुरु अभी इसी चिन्ता में थे कि उनका पुत्र गोविन्द वहाँ आ पहुँचा। पुत्र के बार-बार आग्रह करने पर गुरु तेगबहादुर ने उन्हें समस्त परिस्थिति बताई और अपनी चिन्ता का कारण भी बताया। अन्त मे उन्होंने कहा,- “इन अत्याचारों को रोकने के लिये एक-मात्र उपाय दिखाई देता है और वह यह है कि हम लोगों में जो सबसे अधिक पवित्र और पूज्य है, उसी के बलिदान की आवश्यकता है।”
बालक गोविन्द ने कहा, -“पिताजी! इसमें आपसे बढ़कर पवित्र और पूज्य दूसरा कौन हो सकता है?” बालक के इस उत्तर को सुनकर गुरु तेग बहादुर को बड़ी प्रसन्नता हुई । उन्होंने उसी समय पंडितो से कहा -“आप लोग सम्राट से कहिये कि पहले हमारे गुरु को मुसलमान बनाइये। उनके मुसलमान होने पर सब लोग खुद ही मुसलमान हो जायेंगे।” ब्राह्मणों और पंडितो ने वैसा ही किया ।
सम्राट् के पास जब यह खबर पहुँची, तब उन्होंने गुरु को दिल्ली में हाज़िर होने के लिये कहा। वहाँ पहुँचने पर उनसे मुसलमान होने को कहा गया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में वैसा करने से इनकार कर दिया। सम्राट् की आज्ञा से उन्हें प्राण-दण्ड की सज़ा दी गयी। उस सज़ा को उन्होंने स्वीकार कर लिया। जब जल्लाद की तलवार ने उनका सर धड़ से जुदा कर दिया तब सबने देखा कि उनके गले में कागज का एक टुकड़ा बँधा हुआ है।
उस पर लिखा है – “शिर दिया शरह ना दिया !।”
गुरु तेग बहादुर पर निबंध 1000 शब्दों में – Long Essay On Guru Teg Bahadur in Hindi
सिख समुदाय में दस गुरु सिख धर्म के गठन के लिए जिम्मेदार हैं। पहले गुरु नानक देव थे और उसके बाद नौ अन्य गुरु थे। अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी थे। गुरु तेग बहादुर सिखों के नौवें गुरु थे। वह गुरु अर्जन देव के पोते थे। उन्हें 1665 से उनके निधन तक सिख नेता माना जाता था। गुरु तेग बहादुर जयंती 1 अप्रैल को मनाई जाती है।
गुरु तेग बहादुर का बचपन
गुरु तेग बहादुर का जन्म 1 अप्रैल 1621 को पंजाब के अमृतसर नामक स्थान पर हुआ था। वह गुरु हरगोबिंद सिंह और माता नानकी जी के सबसे छोटे पुत्र थे।
कम उम्र में उन्होंने हिंदी, संस्कृत, गुरुमुखी और कई अन्य धार्मिक दर्शन सीखे। उन्हें पुराणों, उपनिषदों और वेदों का भी ज्ञान था। वे धनुर्विद्या और घुड़सवारी में माहिर थे। उन्होंने अपने पिता से तलवारबाजी भी सीखी।
उनका प्रारंभिक नाम त्याग मल था। 13 साल की उम्र में वह अपने पिता के साथ करतारपुर की लड़ाई में शामिल हुए थे। युद्ध जीतने के बाद, उनके पिता ने उनका नाम बदलकर तेग बहादुर रख दिया। उनका विवाह 1632 में करतारपुर में माता गुजरी से हुआ था। दसवें गुरु “गोविंद सिंह” गुरु तेग बहादुर के पुत्र थे।
गुरु तेग बहादुर जी की शिक्षाएं
अगस्त 1664 में सिख लोगों के एक समूह ने “टिक्का समारोह” आयोजित किया और Guru Teg Bahadur को नववें गुरु के रूप में सम्मानित किया।
गुरु तेग बहादुर ने हमेशा लोगों को शांति और सद्भाव का मार्ग दिखाया। उन्होंने अनुयायियों को परिणाम की चिंता न करने के लिए प्रेरित किया क्योंकि सब कुछ “नानक” द्वारा नियंत्रित किया जाता है। उन्होंने सिखाया कि भगवान हर जगह मौजूद है।
गुरु तेग बहादुर के दर्शन और उपदेश मानवता को प्रेरित करते हैं। उन्होंने अपने अनुयायियों को अहंकार, लालच, मोह, इच्छा और अन्य अपूर्णताओं को दूर करने का तरीका सिखाया।
समाज के प्रति उनका योगदान
“गुरु ग्रंथ साहिब”, सिख पवित्र पुस्तक में गुरु तेग बहादुर के विभिन्न कार्य हैं। उन्होंने 116 शब्द, 57 श्लोक, 15 राग और 115 भजन लिखे थे।
गुरु तेग बहादुर ने गुरु नानक (सिखों के पहले गुरु) के आदर्शों और सिद्धांतों का प्रचार करने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों का दौरा किया। वे जिन स्थानों पर गए और रुके उन्हें सिखों के पवित्र स्थलों में बदल दिया गया है। सिख संदेश फैलाने की अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने गरीबों के लिए पानी के कुएं बनवाकर और लंगर का आयोजन करके लोगों की मदद की।
जब मुगल सेना ने कश्मीरी पंडितों को अपना धर्म बदलने के लिए मजबूर किया। मौत की सजा के डर से उन्होंने गुरु जी से मदद लेने का फैसला किया। पंडित कृपा राम के नेतृत्व में लगभग 500 कश्मीरी पंडित गुरु जी के पास आए। गुरु तेग बहादुर ने उन्हें औरंगजेब से बचाया। उन्होंने “आनंदपुर साहिब” नामक शहर की भी स्थापना की।
गुरु तेग बहादुर मानवता, सिद्धांतों और समाज के आदर्शों के रक्षक थे। भारतीयों की धार्मिक मान्यताओं को बचाने में उनके योगदान के कारण उन्हें “हिंद दी चादर” (भारत की ढाल) माना जाता था।
गुरु तेग बहादुर की मृत्यु कैसे हुई?
मुगल बादशाह औरंगजेब ने लोगों को अपना धर्म इस्लाम में परिवर्तित करने के लिए मजबूर किया। उन्होंने सोचा कि अगर गुरु मुसलमान हो गए तो लोग इस्लाम स्वीकार करेंगे। उन्होंने पांच सिखों के साथ Guru Teg Bahadur को प्रताड़ित किया।
औरंगजेब ने गुरु को या तो इस्लाम स्वीकार करने या चमत्कार करने का आदेश दिया। हालांकि, गुरु तेग बहादुर ने इनकार कर दिया और मुगलों के खिलाफ विरोध किया। अंत में, उन्होंने गुरु तेग बहादुर को मौत की सजा सुनाई।
11 नवंबर 1675 को दिल्ली के चांदनी चौक के केंद्र में गुरु तेग बहादुर का सिर काट दिया गया था। भाई जैता ने गुरु तेग बहादुर का सिर लिया और आनंदपुर साहिब चले आए। बीच में मुगलों से सिर छिपाने के लिए उन्होंने सोनीपत (दिल्ली के पास) के ग्रामीणों से मदद मांगी।
एक ग्रामीण कुशल सिंह दहिया ने आगे आकर मुगलों को देने के लिए अपना सिर अर्पित कर दिया। ग्रामीणों ने गुरु तेग बहादुर के सिर को कुशल सिंह के सिर से बदल दिया। इस तरह, भाई जैता ने दाह संस्कार प्रक्रिया के लिए गुरु गोविंद सिंह (गुरु तेग बहादुर के पुत्र) को सफलतापूर्वक गुरु का सिर सौंप दिया।
हालाँकि, भाई लखी शाह ने Guru Teg Bahadur के शरीर को उनके पास के घर में जला दिया ताकि यह मुगलों के हाथों तक न पहुंच सके।
गुरु तेग बहादुर शहादत दिवस
हर साल 24 नवंबर को गुरु तेग बहादुर शहादत दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसे गुरु तेग बहादुर के शहीदी दिवस के रूप में भी जाना जाता है। यह दिन अपने लोगों के धर्म को बचाने के लिए गुरु द्वारा किए गए बलिदानों को याद करने के लिए मनाया जाता है।
यह दिन ज्यादातर सिख समुदाय द्वारा मनाया जाता है। इस दिन सिख गुरुद्वारा जाते हैं और Guru Teg Bahadur द्वारा लिखे गए भजनों का पाठ करते हैं। भारत के कुछ हिस्सों में लोग वैकल्पिक छुट्टियां भी मनाते हैं।
गुरु तेग बहादुर की स्मृति और विरासत
गुरु तेग बहादुर की याद में, विभिन्न गुरुद्वारे बनाए गए थे। उनके नाम से कई स्कूल और कॉलेज भी स्थापित किए गए। पंजाब में कई सड़कों के नाम उनके नाम पर रखे गए हैं। दिल्ली में गुरु तेग बहादुर स्मारक सरकार द्वारा स्थापित किया गया था जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
चांदनी चौक पर गुरुद्वारा सीस गंज साहिब उस स्थान पर बनाया गया था जहां गुरु तेग बहादुर का सिर काटा गया था। एक अन्य गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब को उस स्थान के रूप में चिह्नित किया गया है जहां Guru Teg Bahadur के शरीर को जलाया गया था या उनका अंतिम संस्कार किया गया था।
निष्कर्ष
गुरु तेग बहादुर एक बहुमुखी व्यक्तित्व वाले योद्धा थे। उन्होंने अपने लोगों के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। वह उन निस्वार्थ शहीदों में से एक थे जिन्होंने विभिन्न भारतीयों को शांतिपूर्वक अपने धर्म का पालन करने में मदद की। Guru Teg Bahadur वीरता और साहस के प्रतीक थे। उनके अपार योगदान और बलिदान के कारण भारत की जनता उन्हें हमेशा याद रखेगी।
गुरु तेगबहादुर ने सिक्ख होते हुए भी हिन्दुओं और पंडितो के धर्म की रक्षा करते हुए बलिदान दे दिया।
उनके द्वारा दी गई शिक्षा का पालन करते हुए हमें मिलजुल कर एक साथ शांति और प्रेम से रहना चाहिए। ऐसे महान बलिदानी, शिक्षक तथा महान गुरु को भारत सहित कई देशों में सम्मान के साथ पूजा जाता है।
गुरु तेग बहादुर पर 10 पंक्तियाँ – 10 Lines On Guru Teg Bahadur In Hindi
- गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे।
- गुरु तेगबहादुर का जन्म 1 अप्रैल 1621, गुरुवार को अमृतसर ( पंजाब ) में हुआ था।
- गुरु तेगबहादुर के पिता का नाम गुरु हरगोबिंद सिंह और माता का नाम नानकी था।
- गुरु तेगबहादुर का “तेग बहादुर” नाम करतारपुर में मुगलों के खिलाफ साहस का परिचय देने पर उनके पिता ने रखा था।
- गुरु तेगबहादुर जी ने “आनंदपुर साहिब” नामक शहर की भी स्थापना की।
- उन्हें “हिंद दी चादर” (भारत की ढाल) माना जाता था।
- Guru Teg Bahadur ने समाज के अधिकारों की रक्षा करने के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया।
- गुरु तेग बहादुर ने हमेशा लोगों को शांति, सद्भाव ओर प्रेम से रहने का संदेश दिया।
- 24 नवंबर को उनके बलिदान को याद करने के लिए शहीद दिवस मनाया जाता है।
- 11 नवंबर 1675, सोमवार को दिल्ली के चांदनी चौक पर औरंगजेब ने उनका सिर कटवा दिया था।
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