Haryana Ke Dharmik Sthal – हरियाणा के धार्मिक स्थलों की सूची

हरियाणा के धार्मिक स्थल ( Haryana Ke Dharmik Sthal ) जो बहुत बार एग्जाम में पूछे जाते है। इस ब्लॉग में आपको हरियाणा के लगभग सभी धार्मिक स्थलों ( Haryana Ke Tirth Sthal ) की पूरी  जानकारी मिलेगी। अगर ब्लॉग अच्छा लगे तो शेयर करे और हमारे साथ जुड़े रहे ताकि आपकी तैयारी अच्छी हो सके।
 
 

Haryana Ke Dharmik Sthal

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गुरुद्वारा नीम साहिब

 
यह गुरुद्वारा कैथल  में प्रताप गेट के निकट है। सिखों के नौवें गुरू गुरुतेगबहादुर जी कैथल के ठण्डहर तीर्थ पर आए थे। यहां स्थित एक नीम के पेड़ के नीचे एक दिन गुरू जी ध्यानमग्न थे तभी एक ज्वर से पीड़ित व्यक्ति वहाँ आया। गुरुजी ने उसे नीम के पत्ते खाने के लिए और खाते ही वह स्वस्थ हो गया। इसी स्थान पर कालांतर में एक गुरुद्वारे का निर्माण हुआ, जिसे नीम साहिब के नाम से जाना गया।
 
 
 

वाल्मीकि आश्रम

balmiki aashram
balmiki aashram

कुरुक्षेत्र में थानेसर रेलवे स्टेशन के सामने स्थित इस Dharmik Sthal पर बाबा लक्ष्मणगिरि महाराज ने जीवित समाधि ली थी। यहां गिरि महाराज की समाधि एवं मन्दिर है।

 
 

पुण्डरीक सरोवर – Pundrik Sarovar

पुण्डरीक सरोवर नामक Dharmik Sthal हरियाणा के ‘पुण्डरी'(कैथल) नामक कस्बे मे स्थित है। कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड द्वारा वर्ष 1987 में यहां नागहद कुण्ड का निर्माण करवाया गया। इस सरोवर के पावन तट पर बने वृन्दावन घाट, गऊ घाट, त्रिवेणी वाला घाट, जनाना घाट तथा मुख्य घाट आज भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं।
 
 

 

कमोधा

 
kamodha - Dharmik Sthal
Dharmik Sthal
 
 
 

कुरुक्षेत्र में स्थित इस वन का संबंध काम्यक वन से है, प्राचीन काल से सरस्वती के तट से मरु प्रदेश तक फैला था। पाण्डवों ने इसी वन में निवास किया था। यहां कामेश्वर महादेव का ईंटो का मन्दिर और मठ है।

 
 

कपाल मोचन मन्दिर या सोम सरोवर तीर्थ – Som Sarovar

तीर्थराज कपाल मोचन मन्दिर जगाधरी से दूर बिलासपुर में स्थित है। इस तीर्थ स्थल से ब्रम्हा, विष्णु, महेश, राम, कृष्ण, बलराम, पाण्डव पुत्रों आदि पौराणिक तथा अकबर, नादिरशाह, गुरु गोविंद सिंह जैसे व्यक्तियों को जोड़ा जाता है। इस सरोवर का वर्णन महाभारत और पुराणों में मिलता है।
 
 

जामनी

 
जींद-सफीदों सड़क से कुछ दूर जामनी नामक धार्मिक स्थान ( Dharmik Sthal ) है। इस स्थान पर भगवान परशुराम के पिता श्री महर्षि जमदग्नि का प्राचीन मन्दिर है। यहां पर महर्षि जमदग्नि ने तपस्या की थी।
 
 

मार्कण्डेय तीर्थ

कुरुक्षेत्र से पिपली जाने वाली सड़क पर सरस्वती नदी के तट पर यह तीर्थ स्थान ( Dharmik Sthal ) है। इस स्थान पर ऋषि मार्कण्डेय का आश्रम था। उन्होंने इसी स्थान पर वर्षों तपस्या करके परम पद प्राप्त किया था। यहां पर एक मन्दिर है। यात्री इस स्थान पर मारकण्डा नदी में स्थान कर सूर्य पूजन करते है।
 
 

बाबा काली कमली वाले का डेरा

जिला कुरुक्षेत्र में स्थित यह Dharmik Sthal सन्निहित तीर्थ के निकट है। श्री स्वामी विशुद्धानन्द महाराज द्वारा स्थापित यह क्षेत्र कमली वाले के क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। यहां पर भगवान शंकर श्रीकृष्ण तथा अर्जुन की प्रतिमाएं है।
 

धनाना

भिवानी से लगभग कुछ ही दूरी पर स्थित धनाना में प्रतिवर्ष चैत्र मास की सातवीं तारीख को शीतला माता, जिसे ‘छोटी माता’ भी कहा जाता है, का मेला लगता है। इस मेले में लगभग सारे हरियाणा से देवी भक्त पूजा, आराधना हेतु आते हैं।
 
 

पाण्डू- पिण्डारा

जनश्रुति के अनुसार इस Dharmik Sthal पर पाण्डवों ने 12 वर्ष तक  सोमवती अमावस्या की प्रतिक्षा की थी तथा महाभारत युद्घ के बाद उन्होंने यहां अपने पूर्वजों के पिण्ड दान की रस्म निभाई थी। यह Dharmik Sthal जींद-गोहाना मार्ग पर जींद के पास स्थित है।
 
 

गुरुद्वारा छठी पादशाही

gurudwara chatti patshahi
gurudwara chatti patshahi

कुरुक्षेत्र में यह गुरुद्वारा सन्निहित तीर्थ के पास स्थित हैं। यहां हमेशा श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।

 
 

पंचवटी

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panchwati

पलवल में अवस्थित पंचवटी मन्दिर पाण्डवों के समय का काल कहा जाता है। यहां द्रोपदी घाट के नाम से प्रशिद्ध एक तालाब तथा पाँच वह वृक्ष है, जो महाभारत काल के माने जाते है|

 
 

श्रीकालेश्वर महादेव मठ

यमुनानगर पाँवटा साहिब सड़क पर यमुना के तट पर कालेशर के पास महाभारतकालीन यह मठ या Dharmik Sthal विश्व के 12मठों में से एक है। रामहेश्वरम में स्थित मठ भी इस सूची में शामिल है। कालेश्वर मठ यमुना, सुखना तथा सरस्वती के संगम पर स्थित है। तथा इसमें विष्णु, महेश तथा शेषनाग व पार्वती की मूर्तियां हैं।
 
 
 

ब्रह्मा सरोवर – Brahma Sarovar

कुरुक्षेत्र में थानेसर सिटी स्टेशन के पास इस Dharmik Sthal को वामन पुराण में बहुत ही पवित्र बताया गया है। इस सरोवर को राजा कुरू ने खुदवाया था। सूर्यग्रहण के अवसर पर यहाँ धार्मिक स्नान होता है।
मत्स्य पुराण के अनुसार सूर्यग्रहण पर यहाँ स्नान करना महापुण्य है। प्रशिद्ध इतिहासकार अबुलफजल ने इसे कुरुक्षेत्र Miniature Ocean(लघुरूप महासागर) कहा है। आकाश में पुष्कर राज तथा तीनों लोकों में पुण्यदायक तीर्थ कुरुक्षेत्र है।
 
 

 

कुबेर तीर्थ – Kuber Tirth

जिला कुरुक्षेत्र में यह Tirth Sthal सरस्वती नदी तट पर काली माता के मन्दिर से थोड़ी दूर पर एक छोटा सा तीर्थ है। यहां   पर यक्षपति कुबेर ने यज्ञों का आयोजन किया था। यहां पर चैतन्य महाप्रभु की कुटिया भी विद्यमान है। यहां पर उन्होंने तपस्या की थी।
 
 

प्राची तीर्थ

यह स्थान जिला कुरुक्षेत्र में स्थित है। कहा जाता है कि देवव्रत (भीष्म पितामह) की माता ‘ गंगा ‘ के पाप इस स्थान पर स्नान करने से दूर हो गए थे। यह स्थान भद्रकाली मन्दिर से उत्तर की ओर कुबेर तीर्थ के पास है।
 
 

सती का स्थान

यह Dharmik Sthal होडल क्षेत्र में है। प्रतिवर्ष जनवरी और अप्रैल में मास में यहां मेला लगता है। यह मेला सती रमनी की याद में लगाया जाता है।
 

गीता भवन

कुरुक्षेत्र तीर्थ के उत्तरी तट पर इसकी स्थापना वर्ष 1921 में रीवा (मध्य प्रदेश) के महाराज ने कुरुक्षेत्र पुस्तकालय के नाम से की थीं।
 
 

नवग्रह

 
कैथल के पुरातन तीर्थों में विशेष महत्व वाले नवग्रह कुण्डों की स्थापना महाभारत के अनुसार कृष्ण ने यज्ञ अनुष्ठान हेतु युधिष्ठिर के हाथों करवाई थी। सूर्यकुंड, चंद्रकुण्ड, बुद्धकुण्ड, वीरकुण्ड, शुक्रकुण्ड, शनिकुण्ड, राहुकुण्ड और केतुकुण्ड नामक ये कुण्ड आज जीर्ण-शीर्ण अवस्था मे है। इन्हीं कुण्डों के कारण कैथल को ‘छोटी काशी’ भी कहा जाता है।
 
 

पुष्कर तीर्थ – Pushkar Tirth

जींद जिले का प्रसिद्ध Dharmik Sthal रामराय से कुछ दूर पुष्कर Tirth Sthal है। कहते हैं कि भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ने इस स्थान पर तपस्या की थी। अब यहां पौंकरी खेडी़ नामक ग्राम है, इसी का नाम प्राचीन ग्रंथों में पुष्कर तीर्थ कहा गया है। यह पूर्णमासी के दिन सरोवर में स्थान करने से विष्णु एवं महेश की आराधना पूरी होती है।

 
 

कमलनाभ तीर्थ

यह Dharmik Sthal जिला कुरुक्षेत्र में स्थित है। भगवान विष्णु के नाभि स्थल ब्रम्हा की उत्पत्ति का पुराणों में वर्णन है। इस स्थान पर ब्रम्हा जी और भगवान विष्णु का पूजन पूजन करने से मनुष्य को इच्छानुसार फल की प्राप्ति होती है। कुछ वर्षों पहले ही इस तीर्थ के तालाब का जीणोद्धार किया गया है।
 
 

बाण गंगा

कुरुक्षेत्र जिले में यह Dharmik Sthal थानेसर-ज्योतिसर मार्ग पर नरकातारी ग्राम के निकट है। इसी स्थान पर भीष्म कुण्ड-बाण गंगा तीर्थ है। अर्जुन ने धरती में बाण मारकर यहां पर गंगा निकाली थी और उसकी जलधारा शर-शैय्या पर पड़े भीष्म पितामह के मुख में पहुंची थी। यहां पर हनुमान की एक विशालकाय प्रतिमा भी स्थापित की गई है।

 
 

तोशाम तीर्थ

भिवानी के तोशाम में पानी के आठ कुण्ड है, जिनमें अतिसुन्दर कुण्ड ‘पंचतीर्थ’ है, जिसे पाण्डव Tirth Sthal भी कहा जाता है।

 
 

गुरुद्वारा कपाल मोचन – Kapal Mochan

यमुनानगर के बिलासपुर स्थित कपाल मोचन सरोवर के पूर्व में यह गुरुद्वारा स्थित है। इसे गुरु गोविंद जी का शस्त्र घाट भी कहा जाता है, क्योंकि कहा जाता है कि 1687 ई. में पहाड़ी राजाओं से युद्ध करने के बाद गुरु गोविंद सिंह ने इस तालाब पर अपने शस्त्र धोए थे।
 
 
 

डोसी तीर्थ स्थल

 
 
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यह Dharmik Sthal हरियाणा और राजस्थान के लोगों की धार्मिक गतिविधियों का केंद्र है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इसका संबंध द्वापरयुग से है। डोसी पहाड़ी (अरावली का एक भाग) पर बढ़ने पर प्रशिद्ध शिवकुण्ड और शिव मन्दिर है। च्यवन आश्रम तथा मन्दिर में सोमवती अमावस्या पर लाखों तीर्थ यात्री आते है।

 
 

हटकेश्वर

जींद जिले के सफीदों उप-मण्डल मुख्यालय से दक्षिण की ओर ग्राम हाट है। हाट के पवित्र सरोवर में पृथ्वी के 68 तीर्थों की क्रांति एवं शक्ति निहित है। सावन शुदी के आखिरी रविवार को यहां मेला लगता है। इसे महाभारतयुगीन ग्राम माना जाता है। खुदाई से प्राप्त होने वाले प्राचीन अवशेषों के कारण भी यह प्रशिद्ध है।
 
 

बराह

जींद से कुछ दूर जींद-गोहाना सड़क पर बराह ग्राम है। इसे बराह तीर्थ भी कहते है। पौराणिक कथा के अनुसार यहीं बराह अवतार अवतरित हुए थे। यहां पूर्णमासी के दिन मेला लगता है। यहां स्थित पवित्र सरोवर में स्नान करने से पुण्य फल मिलता है।
 
 

देवसर

यह Dharmik Sthal भिवानी से कुछ दूरी पर है। माँ दुर्गा साक्षात रूप में इस स्थान पर प्रकट हुई थी, जिसके बाद यहां मन्दिर का  निर्माण हुआ। इस पर प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में लोग आते है तथा अपने बच्चों का मुण्डन करवाते है।
 
 

गौड़ीय मठ

कुरुक्षेत्र के उत्तरी तट पर बना यह मठ चैतन्य महाप्रभु के समय का है। यहाँ पर बंगाली साधु रहते हैं, जो ‘हरे कृष्ण’ नाम का कीर्तन करते हैं। यहां राधा-कृष्ण की मूर्तियाँ है। श्री चैतन्य महाप्रभु को विष्णु भगवान का अवतार माना जाता है और इन्हें गौरांग महाप्रभु के नाम से पुकारा जाता है।
 
 
 

सूर्यकुण्ड

बिलासपुर के समीप कपाल मोचन के पूर्व में सूर्यकुण्ड है। ऐसा माना जाता है। कि इस Dharmik Sthal पर स्नान करने से निःसन्तान स्त्रियों को सन्तान की प्राप्ति होती है।
 
 
 

पृथुदक-पेहोवा

यह तीर्थ स्थल थानेसर में सरस्वती नदी के किनारे स्थित है, आषाढ़ मास में मार्गशीर्ष नक्षत्र में यहां श्राद्ध किया जाता है। लगभग 100-150 वर्षों पूर्व निर्मित श्रवणनाथ तथा गरीबनाथ मन्दिर आज भी आकर्षण का केंद्र है।
 
 

धमतान साहिब

सिखों के नौवें गुरू, गुरू तेगबहादुर से संबंधित यह Dharmik Sthal नरवाना उप-मण्डल के नरवाना-टोहाना मार्ग पर अवस्थित  है। गुरू तेगबहादुर औरंगजेब के दरबार मे अपनी शहीदी देने के लिए जाते समय यहां रूके थे। यहां होली, दशहरा, अमावस्या के दिन मेला लगता है तथा यहां पवित्र तालाब भी है।
 
 

नरकातारी-अनरक तीर्थ

अनरक Tirth Sthal कुरुक्षेत्र के प्राचीन तीर्थों में से एक है। पौराणिक काल में यह तीर्थ अधिक प्रशिद्ध था। यह तीर्थ कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के उत्तर-पश्चिम में 1km की दूरी पर स्थित है। यहां पर बहुत गहरा एक गहरा कुण्ड है, जिसे बाणगंगा कहा जाता है।
 

रामराय

धार्मिक ग्रंथों  में तीर्थ स्थल रामहद के नाम से प्रशिद्ध यह स्थल जींद-हिसार सड़क पर अवस्थित है। इसके पास ही महाभारतकालीन राजा इक्ष्वाकु की नगरी ‘इक्कस ग्राम’ है। पास ही ‘ढूँढवा’ नामक स्थान है, जहां दुर्योधन युद्ध मे हारने के बाद छिप गया था तथा भीम ने उसे ढूँढकर वहां मार दिया था।
 
 

चन्द्रकूप

यह Dharmik Sthal कुरुक्षेत्र तीर्थ के निकट है। यहाँ पर एक कुआँ है, जो कुरुक्षेत्र के पवित्र कूपों में गिना जाता है। इसके निकट एक मन्दिर है, जो धर्मराज युधिष्ठिर ने महाभारत के युद्ध के बनवाया था। इसी स्थान पर विजय स्तम्भ कायम किया गया था, जो अब लुप्त है।

 

आपगा

कुरुक्षेत्र का अत्यंत प्राचीन तीर्थ स्थल जो ऋग्वेद नदी आपया के तट पर स्थित था। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार यहां भाद्रपद मास में, विशेष रूप से कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न मे पिण्डदान करने वाले व्यक्ति को मुक्ति प्राप्त होती है।
 
 

सफीदों

जींद जिले के अव्यवस्थित इस Dharmik Sthal को महाभारत युग में सर्पदमन नाम से जाना जाता था। किंवदंती के अनुसार जनमेजय ने अपने पिता परीक्षित की साँप के काटने से मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्पदमन यज्ञ किया था। अब यहां नागक्षेत्र नामक सरोवर और तीर्थस्थल है।
 
 

अस्थल बोहर

रोहतक जिले में अवस्थित इस स्थल की प्रसिद्ध मठ आश्रम के कारण है।, जहां दर्शनी या कनफटे साधुओं का निवास स्थान है। ये गोरखनाथ को अपना प्रथम गुरु मानते है। इस मठ की स्थापना 8वीं सदी में श्री चौरंगीनाथ द्वारा की गई थी। 250वर्ष पूर्व इस प्राचीन मठ का जीणोद्धार सिद्ध शिरोमणि बाबा मस्तनाथ ने किया था।
 
 
 

गुरुद्वारा लाखन माजरा

रोहतक-जींद मार्ग पर रोहतक से कुछ ही दूरी पर यह Dharmik Sthal स्थित है यहां होली का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है यहां फाल्गुन के महीने में मेला लगता है।
 
 

पिंजौर

 
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पिंजौर एक प्राचीन, धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल है। पिंजौर का सम्बन्ध पांडवों से भी रहा है, पिंजौर मुगल-गार्डन के नाम से भी प्रशिद्ध है। यह उत्तरी भारत का पुराना व महत्वपूर्ण गार्डन है। 1775 में इसे पटियाला के महाराजा अमरसिंह ने खरीद लिया था। हरियाणा सरकार ने इसका कायाकल्प कर दिया है। तथा इसका नाम पटियाला रियासत के महाराजा यादवेंद्र के नाम पर यादवेंद्र उद्यान रखा है। यहां एक भीमा मन्दिर भी है, जिसका सम्बन्ध पांडवों से है।
 
 

गुरुद्वारा मंजी साहिब

कैथल नगर में स्थित इस गुरुद्वारा के बारे में एक जनश्रुति है कि एक बार कैथल नगर में रहने वाले एक गरीब तरखान श्रद्धालु ने सिखों के नौवें गुरू तेगबहादुर को अपने घर आमंत्रित किया था। गुरू जी उस समय वर्तमान नीम साहिब गुरूद्वारा के स्थान पर एक नीम के पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे।
 
गुरु जी की सेवा से कृतार्थ होने वाले उस तरखान सिंह ने यह स्थान गुरुद्वारे के निर्माण हेतु  दिया था। वह चारपाई बनाने का काम करता था और कालांतर में इसी स्थान पर मंजी साहिब गुरुद्वारे का निर्माण हुआ और आज यहां नगर का एक भव्य गुरुद्वारा बन चुका है।
 
 

हंसडैहर

जींद जिले के नरवाना उपमंडल मुख्यालय से कुछ दूर नरवाना-पटियाला सड़क से पूर्व की ओर हंसडेहर नामक पौराणिक तीर्थस्थल है। पुराणों के अनुसार सिद्ध पुरूष कपिलमुनि के पिता कर्दम ऋषि ने यहाँ तपस्या की। सोमवती अमावस्या को यहां महत्वपूर्ण मेला लगता है। मेले में लोग अपने पूर्वजों के पिण्डदान करते है। इस समय  यहां पर कर्दम ऋषि का एक सुंदर मन्दिर एवं प्राचीन सरोवर विद्यमान है।

 
 

पहाड़ी

लोहारू उपमंडल के गांव पहाड़ी, जो कि लोहारू नगर से 16km दूर है, में भी चैत्र तथा आश्विन मास में दुर्गा माँ का मेला लगता है।

 

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